राम कथा सितारों से सुनिए

"राम कथा सितारों से सुनिए" पुस्तक का विमोचन 14 अक्टूबर 2021 को गरुड़ प्रकाशन एवं संगम टॉकस के संयुक्त तत्वाधान में ऑनलाइन हुआ । पुस्तक का विमोचन निम्नलिखित महान हस्तियों ने किया –

  1. आचार्य बालकृष्ण - पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड के एम.डी. और पतंजलि योगपीठ हरिद्वार के सह-संस्थापक
  2. प्रोफेसर टंकेश्वर कुमार - हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय, महेंद्रगढ़ के कुलपति
  3. डॉ. राम अवतार – सच्चे रामभक्त और लेखक डॉ. राम अवतार श्री राम वन गमन स्थलों के अद्भुत शोधकर्ता हैं
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इस पुस्तक में महर्षि वाल्मीकि द्वारा रामायण में वर्णित क्रमिक ग्रहों की स्थितियों के आकाशीय दृश्यों के माध्यम से रामायण में वर्णित घटनाओं की सटीक तिथियों का निर्धारण किया गया है। पुरातत्व, समुद्र विज्ञान और सुदूर संवेदन सहित विज्ञान के आठ विषयों के साक्ष्य इस खगोलीय तिथि क्रम का समर्थन करते हैं।

इसके लेखक हैं श्रीमती सरोज बाला तथा श्री दिनेश चंद्र अग्रवाल और प्रकाशक हैं गरुड़ प्रकाशन, जिसके मुखिया तथा CEO हैं श्री संक्रांत सानु । विमोचन के समय का बैनर देखें, जिसमें लगभग सभी विशिष्ट व्यक्तियों के चित्र शामिल हैं -

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पुस्तक के विषय में

इस पुस्तक में महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित श्रीराम की मूल जीवन गाथा में दिए गए घटनाक्रम को बताते हुए, उनके जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं की वास्तविक तिथियों के समय देखे गए आकाशीय दृश्यों को इस प्रकार बुन दिया गया है कि वो चरितावली में अंतर्निहित हो गए ।

पाठक यह देखकर आनंदित हो सकते हैं कि जब श्रीराम का जन्म हुआ था तो पांच ग्रहों को अपने अपने उच्च स्थान में दर्शाते हुए आकाश किस प्रकार सुंदर और चमकदार दिखाई दे रहा था और जब हनुमान द्वारा अशोक वाटिका में सीता को रावण द्वारा धमकाते हुए देखा गया तो ग्रहण से ग्रसित चंद्रमा लंका के आकाश में उदित हुआ ।

पुरातत्व तथा पुरा-वनस्पति विज्ञान, भूगोल तथा समुद्र विज्ञान, रिमोट सेंसिंग और आनुवंशिक अध्ययन भी रामायण के इस खगोलीय काल निर्धारण की पुष्टि करते हैं। 7000 वर्ष पुराने ताम्बे के वाणाग्र, सोने चाँदी के आभूषण, बहुमूल्य पत्थरों व मोतियों के गहने, टैराकोटा के बर्तन व अन्य वस्तुएँ तथा विभिन्न प्रकार के पेड़, पौधे व फसलों के चित्र भी इस पुस्तक में शामिल हैं ।

क्या श्रीराम का वास्तव में ही अयोध्या में जन्म हुआ था और क्या उन्होंने सचमुच सज्जन पुरुषों की राक्षसों के अत्याचारों से रक्षा करने के लिए अयोध्या से लंका तक की यात्रा की थी? क्या उन्होंने एक आदर्श पुत्र, एक आदर्श भाई, एक आदर्श समाज सुधारक, तथा आदर्श शासक के रूप में अतुलनीय उदाहरण पेश किये ? इन प्रश्नों के सटीक व विश्वसनीय उत्तर इस पुस्तक में अवश्य मिलेंगे ।


लेखकों का परिचय

श्रीमती सरोज बाला - इस पुस्तक की लेखक श्रीमती सरोज बाला भारतीय राजस्व सेवा की एक प्रतिष्ठित अधिकारी रहीं हैं। मुख्य आयकर आयुक्त के रूप में सेवा करने के बाद, वे 2009 में सदस्य, सी.बी.डी.टी. के पद से सेवानिवृत्त हुई। वह 2009 से 2017 के दौरान वेदों पर वैज्ञानिक शोध संस्थान की निदेशक रहीं। उनकी पुस्तक “वैदिक युग एवं रामायण काल की ऐतिहासिकताः समुद्र की गहराइयों से आकाश की ऊँचाइयों तक के वैज्ञानिक प्रमाण” 2012 में हिंदी तथा अंग्रेजी में प्रकाशित हुई। गुरु जांभेश्वर विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, हिसार ने इस शोध के लिए उन्हें डॉक्टर ऑफ साइंस की डिग्री प्रदान की। तत्पश्चात, उन्होंने पुस्तक “रामायण की कहानी, विज्ञान की जुबानी” लिखी थी, जिसका विमोचन अक्टूबर 2018 में हुआ। 30 नवंबर 2019 को श्री योगी आदित्यनाथ जी ने माननीय प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी को इस पुस्तक की एक प्रति भेंट की। इसका अंग्रेजी संस्करण “रामायण रीटोल्ड विद साइंटिफिक एविडेंस” फरवरी 2019 में लॉन्च किया गया। उनकी पुस्तक “महाभारत रीटोल्ड विद साइंटिफिक एविडेंस” का विमोचन 20 मार्च 2021 को कोन्सटीच्यूशन क्लब ऑफ़ इंडिया में हुआ । इसके हिंदी संस्करण ‘महाभारत की कहानी, विज्ञान की जुबानी का विमोचन नवम्बर 2022 को जेएनयू में हुआ ।

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श्री दिनेश चंद्र अग्रवाल - इस पुस्तक के सह लेखक श्री दिनेश चंद्र अग्रवाल भी आयकर विभाग के प्रतिष्ठित आई॰आर॰एस॰ अधिकारी रहे हैं। आयकर विभाग में तीस वर्षो तक सेवा करने के उपरांत वे आयकर अपीलीय अधिकरण में लेखा सदस्य के रूप में कार्यरत रहे और जुलाई 2011 में सेवा निवृत हुए। उन्होंने साइंस में मास्टर्स डिग्री लेने के पश्चात कानून में और आई॰सी॰डब्लू॰ऐ॰आई॰ से स्नातक डिग्री प्राप्त की है और वर्तमान में आयकर अधिवक्ता के रूप में कार्यरत है। उनके आयकर से सम्बंधित लगभग 200 प्रपत्र और तीन पुस्तके प्रकाशित हो चुकी हैं। भारत के इतिहास में उनकी विशेष रुचि है। उनका भी दृढ विश्वास रहा है कि श्री राम एक ऐतिहासिक पुरुष थे परन्तु उनके अलौकिक गुणों तथा अत्यंत उत्तम चरित्र के कारण उन्हें ईश्वर का स्थान प्राप्त है। “राम कथा - सितारों से सुनिए” पुस्तक के लेखन में उनका यही विश्वास और रुचि परिलक्षित होती है।

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‘राम कथा-सितारों से सुनिए’ पुस्तक में शामिल कुछ विश्वसनीय तथ्य व प्रमाण–
जानें विमोचन वीडियो से

‘रामायण की कहानी, विज्ञान की जुबानी’ के बारे में जान लेने के पश्चात पाठकों की यह हार्दिक इच्छा थी कि श्री राम की जीवनगाथा को तथ्यों, तिथियों तथा साक्ष्यों के साथ संक्षिप्त, सरल तथा रोचक भाषा में प्रस्तुत किया जाए ताकि लाखों-करोड़ों लोग उसका पठन-पाठन कर सकें तथा रामायण से संबन्धित अनेकों प्रश्नों का तर्कसंगत उत्तर पा सकें । अतः उनकी इच्छाओं का सम्मान करते हुए मैंने तथा श्री दिनेश चंद्र अग्रवाल ने मिलकर इस पुस्तक ‘रामकथा सितारों से सुनिए’ की रचना की ।

20वीं शताब्दी के महानत्तम वैज्ञानिक डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम ने कहा था -

‘‘रामायण का एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि वाल्मीकि जी ने महाकाव्य रामायण की रचना करते समय उसमें बहुत से प्रमाण सम्मिलित किए। एक ओर उन्होंने उस समय पर आकाश में ग्रहों एवं नक्षत्रों की स्थिति एवं बहुत से स्थलों का भौगोलिक चित्रण एवं ऋतुओं का वर्णन किया है, तो दूसरी ओर राजाओं की वंशावलियों के बारे में विस्तृत जानकारी दी है। वैज्ञानिक विधि का उपयोग करके वाल्मीकि रामायण में वर्णित घटनाओं का समय ज्ञात करना असंभव नहीं है।

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https://www.youtube.com/c/RigvedatoRobotics/videos

आधुनिक तारामंडल सॉफ्टवेयर का उपयोग करके खगोलीय गणनाओं ने यह सिद्ध किया है कि वाल्मीकि रामायण में वर्णित घटनाएं वास्तव में 7000 वर्ष पूर्व उसी क्रम में घटित हुई थीं जैसाकि रामायण में वर्णित हैं। रामसेतु उसी स्थान पर जलमग्न पाया गया है जिस स्थान का वर्णन रामायण में किया गया है। जलवायु परिवर्तन पर नासा के अनुमान के अनुसार पिछले 7000 वर्षों के दौरान समुद्र के स्तर में वृद्धि लगभग 2.8 मीटर हुई है। वर्तमान में रामसेतु के अवशेष समुद्र सतह से लगभग इसी गहराई पर जलमग्न पाए गए हैं”।

इस पुस्तक में बहुआयामी वैज्ञानिक अनुसंधान रिपोर्टो से उद्धृत तथ्यों तथा साक्ष्यों के आधार पर रामायण में वर्णित घटनाओं का सटीक तथा अनुक्रमिक तिथिनिर्धारण किया गया है और यह निष्कर्ष निकाला गया है कि आदरणीय डॉ. कलाम द्वारा प्रस्तुत किये गये तथ्य बिल्कुल सत्य हैं। ऐसा करने के लिए अपनाई गई विधि का यथाक्रम वर्णन इस प्रकार है-

  1. प्लैनेटेरियम तथा स्टेलेरियम सॉफ्टवेयर का उपयोग कर रामायण के खगोलीय संदर्भों के व्योमचित्र लिये गए, जिन्होंने रामायण काल का सीधा संबंध 5100 वर्ष ईसा पूर्व से स्थापित कर दिया । महर्षि वाल्मीकि द्वारा वर्णित उनके जन्म के समय की ग्रहों नक्षत्रों की सभी स्थितियाँ हू-ब-हू 5114 ईसापूर्व की चैत्र शुक्ल नवमी को दिखाई दीं ।
  2. पुरातत्व विज्ञान, पुरावनस्पति विज्ञान, भू-विज्ञान तथा समुद्र विज्ञान, रिमोट सेंसिग और अनुवांशिक अध्ययन भी रामायण के इस खगोलीय काल निर्धारण की पुष्टि करते हैं।
  3. पुराने ताम्बे के वाणाग्र, सोने चाँदी के आभूषण, पत्थरों व मोतियों के गहने, टैराकोटा के बर्तन तथा विभिन्न प्रकार के पेड़, पौधों व फसलों के चित्र भी इस पुस्तक में शामिल किए गए हैं।
  4. क्या श्रीराम का जन्म अयोध्या में ही हुआ था? क्या उन्होंने सज्जन पुरुषों की अत्याचारों से रक्षा हेतु लंका तक की सचमुच ही यात्रा की थी? क्या उन्होंने एक आदर्श पुत्र, एक आदर्श भाई तथा आदर्श समाज सुधारक के रूप में अतुलनीय उदाहरण पेश किये? इन प्रश्नों के विश्वसनीय उत्तर इस पुस्तक में अवश्य मिलेंगे।
  5. इस पुस्तक में तीन अनुलग्नक हैं- दृष्टिगोचर ग्रहों, नक्षत्रों तथा खगोलीय विन्यासों की आधारभूत अवधारणा, रामायण में दिए गए खगोलीय संदर्भों की क्रमिक खगोलीय तथा ऐतिहासिक तिथियों की सूची, युगों की अवधारणाः व्याख्या एवं स्पष्टीकरण।
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अयोध्या 27° उत्तर, 82° पूर्व; 10 जनवरी 5114 ई०पू०,12:30 बजे,: सूर्य मेष में, शुक्र मीन में, मंगल मकर में, शनि तुला में, बृहस्पति कर्क में, चंद्रमा पुनर्वसु में, पूर्व में उदय होती हुई कर्क राशि; चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी (प्लेनेटेरियम) (वा रा 1/18/8-10)
  1. इनको पढ़ने के पश्चात् पाठकों को इस पुस्तक में दिये आकाशीय दृश्यों को समझना आसान हो जाएगा और यह भी आभास हो जाएगा कि यदि हम युगों की अवधारणा का सही अर्थ निकालते हैं तो इस पुस्तक में दी गई तिथियां हमारे पारम्परिक विश्वास के अनुसार ही हैं।

गरुड़ा प्रकाशन के सीईओ श्री संक्रांत सानु जी ‘राम कथा सितारों से सुनिए’ के विमोचन अवसर पर पुस्तक का परिचय देते हुए।

14 अक्टूबर 2021 को, पुस्तक "राम कथा सितारों से सुनिए" के ऑनलाइन लॉन्च कार्यक्रम के दौरान, श्री संक्रान्त सानु ने कहा कि श्री राम भारतीयों के अस्तित्व में व्याप्त हैं और वह एक वास्तविक मर्यादापुरुषोत्तम थे, जो नर से नारायण बन गए, जिनकी लाखों-करोड़ों लोगों द्वारा पूजा-अर्चना की जाती है।

फिर भी, श्रीमती सरोज बाला और श्री दिनेश अग्रवाल को उनके जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं की सटीक तारीखों के साथ-साथ उनके अस्तित्व को साबित करने के लिए इतना गहन शोध करना पड़ा। ऐसा भारत में ही संभव है जहां श्री राम के अस्तित्व के बारे में अनेकों प्रश्न खड़े कर दिये गए; उन सब के उत्तर इस पुस्तक में दिये गए।

यह अनुसंधान अत्यधिक कठिन नहीं था क्योंकि महर्षि वाल्मिकी किसी कैलेंडर पर निर्भर नहीं थे; उनके लिए आकाश में नक्षत्रों के साथ ग्रहों की स्थिति ही वह कैलेंडर था, जिससे खगोल विज्ञान पर आधारित सटीक तिथियां/तारीखें निकाली जा सकती थीं। आज की प्लैनेटेरियम सॉफ्टवेयर ने इस कथन की सत्यता को सिद्ध कर दिया है ।

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वाल्मीकि जी द्वारा ग्रहों नक्षत्रों की क्रमिक तिथियाँ निकालने के लिए इस सॉफ्टवेयर का प्रयोग किया, और परिणाम अत्यंत विश्वसनीय है। अनेकों अन्य वैज्ञानिक प्रमाण उनके इस शोध की पुष्टि करते हैं ।


वैज्ञानिक साक्ष्यों ने सिद्ध किया श्रीराम काल्पनिक नहीं अपितु वास्तविक मर्यादापुरुषोत्तम थे –
श्री राम अवतार शर्मा

श्री राम आवतर स्वयं जाने माने शोधकर्ता हैं और उन्होंने लोकप्रिय पुस्तक ‘जहां जहां राम चरण चली जाहिं’ की रचना की है। वो अनन्य राम भक्त हैं और उन्हें आज भी लोग वास्तविक संत मानते हैं ।

14 अक्तूबर 2021 को पुस्तक - राम कथा सितारों से सुनिए का विमोचन करते हुए उन्होंने कहा कि श्रीमती सरोज बाला ने एक असाधारण अन्वेषण के माध्यम से सिद्ध किया है कि श्रीराम का जन्म वास्तव में ही अयोध्या में हुआ था और उन्होंने वास्तव में ही भले मानवों की राक्षसों से रक्षा हेतु अयोध्या से लंका तक की यात्रा की। उत्तम आदर्शों का पालन करने तथा अपने महान जन कल्याणकारी कार्यों के कारण ही वो नर से नारायण बन गए ।

उन्होने यह भी कहा कि सरोज जी ने श्री राम के महान व्यक्तित्व की व्याख्या करते हुए, उनके इतिहास, भूगोल, अस्त्रों-शास्त्रों, उनके अलौकिक गुणों सभी की वारे में अध्ययन किया है और दिनेश चन्द्र अग्रवाल जी के साथ मिलकर एक अद्भुत रचना पेश की है ।

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सरोज बाला से जाने रामसेतु से संबंधित वैज्ञानिक साक्ष्य और कुछ बेहद दिलचस्प तथ्य, 2021

14 अक्तूबर 2021 को पुस्तक ‘राम कथा सितारों से सुनिए’ के विमोचन के समय श्रीमती सरोज बाला ने बताया कि खगोलीय तथा पुरातात्त्विक प्रमाण रामायण को 7000 वर्ष पुराना सिद्ध करते हैं । रामसेतु वर्तमान में समुद्र के जल स्तर के तीन मीटर नीचे जलमग्न है और एनआईओ, गोवा के द्वारा तैयार समुद्र जलस्तर वक्र के अनुसार, 7000 वर्ष पूर्व समुद्र का जल स्तर वर्तमान से तीन मीटर नीचे था; इस प्रकार 7000 वर्ष पूर्व इस पर चला जा सकता था ।

सरोज बाला ने शिपिंग-मार्ग बनाने हेतु सेतु को तोड़ने के विफल हुए प्रयासों के वारे में कई दिलचस्प तथ्य बताए - ड्रेजिंग कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया द्वारा हॉलैंड से मंगाया गया ड्रेजर सेतु तोड़ते समय दो हिस्सों में टूटकर जलमग्न हो गया । ड्रेजर को निकालने गया डीसीआई का क्रेन भी टूटकर समुद्र में डूब गया । निरिक्षण के लिए आये रूसी अभियन्ता (इंजीनियर) की टांग टूट गयी ! आस्था वाले लोग इसे दैवीय प्रकोप मानते हैं जबकि वैज्ञानिक इस का वैज्ञानिक आधार बताते हैं। जो भी हो, रामसेतु के अंतिम अवशेषों को नष्ट करने के तमिलनाडू व भारतीय सरकार के सभी प्रयास विफल रहे तथा कई हज़ार करोड़ का नुकसान भी हुआ।

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युगों की अवधारणा: व्याख्या एवं स्पष्टीकरण - सुनें श्रीमती सरोज बाला से

14 अक्तूबर 2021 को पुस्तक ‘राम कथा सितारों से सुनिए’ के विमोचन के समय श्रीमती सरोज बाला ने कहा कि चतुर्युग (सतयुग, त्रेता युग, द्वापर युग और कलियुग) में मूल रूप से केवल 12,000 मानव वर्ष ही होते थे । कुछ अल्पाधिक वर्षों सहित चतुर्युग के अवरोही तथा आरोही क्रम भी थे । परन्तु सुदूर प्राचीन काल में किसी समय एक मानव वर्ष को देवताओं के एक दिव्य दिवस के बराबर मानकर चतुर्युग को 12,000 दिव्य वर्षों का मान लिया गया। यही नहीं फिर उत्तरायण (सूर्य की 180 दिनों की उत्तर दिशा में चाल) को देवताओं का एक दिन और दक्षिणायण (सूर्य की 180 दिनों की दक्षिण दिशा में चाल) को देवताओं की एक रात मानकर यह व्याख्या कर दी गई कि ये 360 दिन देवताओं का एक दिन और एक रात होते हैं।

फलस्वरूप 360 मानव वर्षों को देवताओं के एक वर्ष के बराबर मान लिया गया। तत्पश्चात् चतुर्युग को 12000 दिव्य वर्षों का मानकर, इन 12000 दिव्य वर्षों को 360 से गुणा करके चतुर्युग की समयावधि 43,20,000 मानव वर्ष निर्धारित कर दी गई। ऐसा आभास होता है कि दिव्य दिन की यह व्याख्या ध्रुव देवता के एक दिन और एक रात के लिए की गई होगी। भला मनुष्यों के लिये ‘दिव्य वर्ष’ लागू करने का क्या औचित्य हो सकता था और फिर सूर्य की उत्तरायण और दक्षिणयाण चाल के 360 दिनों के साथ चतुर्युग के 12000 वर्षों को गुणा करने का भी क्या औचित्य हो सकता था?

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Folio from the Mewar Ramayan, Artist Sahib Din.IO San 3621 ff.3v (text) and 3r picture); https://www.bl.uk/ramayana (Courtesy: British Library Board)
{लंका के द्वीप पर पहुंचने के बाद, अशोक वाटिका में साध्वी सीता को धरती पर बैठी देखकर हनुमान सिकुड़ कर शीशम के पेड़ के ऊपर छुपकर बैठ गए। चारों तरफ भयंकर राक्षसियों ने उन्हें घेर रखा था। रावण स्त्रियों को साथ ले कर आया और सीता जी को उसके साथ शादी करने के लिए धमकाने लगा, लेकिन वह उसे फटकार लगाती रहीं ।
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धनुषकोटी (भारत) से तलाईमन्नार (श्रीलंका) तक रामसेतु – द्वीपों, पर्वतों, और बरेतियों की एक प्राकृतिक श्रृंखला के अंतराल भरने में मानवीय हाथ का योगदान साफ दिखाई दे रहा है। 7100 वर्ष पहले पानी का स्तर आज के जल स्तर से लगभग तीन मीटर नीचे था और उतनी गहराई पर ही यह सेतु जलमग्न है। (चित्र https://www.jagranjosh.com/ के सौजन्य से)

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