महाभारत की कहानी, विज्ञान की ज़ुबानी
इस पुस्तक का विमोचन माननीय उच्च शिक्षा राज्य मंत्री डॉक्टर सुभाष सरकार जी के कर कमलों द्वारा 12 नवम्बर 2022 को JNU के कन्वेंशन सेंटर में हुआ। यह विमोचन प्रो. शांतिश्री धूलिपुड़ी पंडित, कुलपति, जे.एन.यू, श्री टंकेश्वर कुमार, कुलपति, हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय, श्री संतोष कुमार तनेजा, संस्थापक, जन कल्याण शिक्षा समिति की गरिमामयी उपस्थिती में हुआ ।
पुस्तक के विषय में
महाभारत प्राचीन संस्कृत साहित्य का एक अद्वितीय महाकाव्य है। एक लाख से अधिक श्लोकों वाली इस भव्य व विशाल कविता की रचना महर्षि व्यास ने की थी ।
विश्व के इस विशालतम काव्य को संक्षेप में केवल तीन सौ पृष्ठों में बहुत ही सरल भाषा में लिख दिया गया है। सुंदर चित्रों के साथ, इस ऐतिहासिक कहानी में वैज्ञानिक प्रमाणों को बुना गया है।
तारामंडल सॉफ्टवेयर का उपयोग कर महाभारत में अभिलिखित अनुक्रमिक ग्रहों-नक्षत्रों की स्थितियों के आकाशीय-दृश्य दर्शाये गए हैं तथा इस प्रकार महत्वपूर्ण घटनाओं की सटीक तिथियां निर्धारित की गई हैं।
देखें आकाश कैसा दिखायी दे रहा था जब श्री कृष्ण अर्जुन को गीता का ज्ञान दे रहे थे, जब द्वारका के विनाश से पहले सूर्य ग्रहण दिखायी दिया, या जब युद्ध के सैंतीस वर्ष पश्चात कलियुग का प्रारंभ हुआ था।
युद्ध के दौरान कौरवों और पांडवों की ओर से लड़े राज्यों के क्षेत्रों में स्थित पुरातात्त्विक हड़प्पा स्थलों को दर्शाने वाला मानचित्र देखें। क्या इन्हें महाभारत काल के वैदिक स्थलों के रूप में वर्णित करना अधिक उपयुक्त नहीं होगा?
पुस्तक में प्रतिष्ठित विद्वानों द्वारा महाभारत युद्ध की तिथियों पर किए गए दावों का विश्लेषण भी किया गया है। तत्पश्चात अनेकों वैज्ञानिक साक्ष्यों के आधार पर यह सिद्ध किया गया है कि युद्ध 3139 वर्ष ई.पू. में लड़ा गया था तथा इस महाकाव्य में भारत के प्राचीन इतिहास का ही वर्णन किया गया है।
Mahabharat ki kahani, Vigyan Ki Jubani -
Saroj Bala has proved the historicity of Mahabharat with dates of important events
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पुस्तक प्राचीन भारत के इतिहास के विषय में बनी गलत धारणाओं को दूर करती है
यह पुस्तक भारत के प्राचीन इतिहास के विषय में सैंकड़ों वर्षों से बनी गलत धारणाओं को दूर कर पाठकों को महाकाव्यों के युग को भारतवर्ष का वास्तविक व स्वर्णिम इतिहास मानने के लिए विवश कर देगी। इस पुस्तक में सटीक तिथियों तथा अन्य साक्ष्यों के साथ महाभारत युद्ध की महत्वपूर्ण घटनाओं का वर्णन है।
बावन वर्षों की अवधि (3153 से 3101 ईसापूर्व) में देखे गए अनुक्रमिक खगोलीय संदर्भों के आकाशीय दृश्यों के माध्यम से यह सिद्ध किया गया है कि महाभारत का युद्ध 3139 वर्ष ईसा पूर्व में लड़ा गया था। युद्ध से पहले कार्तिक पूर्णिमा, 31 अगस्त 3139 ईसा पूर्व, को प्लैनेटेरियम सॉफ्टवेयर ने चंद्रग्रहण दिखाया तथा उसी कार्तिक मास की अमावस्या को दिखायी दिया सूर्यग्रहण (14 सितम्बर 3139 ईसा पूर्व)। स्टेलेरियम ने यही ग्रहण 26 दिन पश्चात दिखाये, अर्थात 26 सितम्बर व 11 अक्तूबर को।
इस सूर्य ग्रहण से केवल छः घंटे पहले सातों ग्रहों की स्थितियां सोलह नक्षत्रों के सम्बन्ध में बिल्कुल वैसी थीं जैसी महाभारत के भीष्मपर्व के अध्याय तीन (3/14-18) के छःश्लोकों में वर्णित की गई हैं। प्लैनेटेरियम ने यह व्योमचित्र 14 सितम्बर को तथा स्टेलेरियम ने 10 अक्तूबर 3139 ईसा पूर्व को दिहाया। इससे 25920 वर्ष पहले या 25920 बाद में यह आकाशीय दृश्य नहीं दिखाई देता ।
पुरातात्त्विक प्रमाणों ने सिद्ध किया है कि हड़प्पा स्थल कहलाने वाले स्थान वास्तव में महाभारत काल के वैदिक स्थल थे
देखें कैसे पुरातात्त्विक प्रमाण खगोलीय तिथियों का समर्थन करते हैं! इस पुस्तक की सबसे बड़ी उपलब्धि वो मानचित्र है, जिसमें महाभारत युद्ध में भाग लेने वाले सभी राज्यों की भौगोलिक स्थितियां, उन में स्थित लगभर 3000 वर्ष ईसा पूर्व की कार्बन तिथियों वाले पुरातात्त्विक स्थलों की जीपीएस प्लोटिंग के साथ दी गयी है! हड़प्पा स्थलों के रूप में वर्णित किये जाने वाले स्थान वास्तव में महाभारत काल के वैदिक स्थल थे।
महाभारत युद्ध में कौरवों की ओर से लड़ने वाले राज्य लाल रंग में तथा पांडवों की ओर से भाग लेने वाले राज्य नीले रंग में; उनमें स्थित उत्खनित स्थलों की जीपीएस प्लॉटिंग के साथ
लाल रंग में दिखाए गए राज्य कौरवों की ओर से लड़े (कोष्ठक में उत्खनित स्थलों के नाम) – कुरु (राखीगढ़ी, कुणाल, बनवाली, हस्तिनापुर), बल्ख (बेक्टरिया), काम्बोज (मुंडीगाक), गांधार (सरायखोला), कैकेय (जलीलपुर), माद्रदेश (हड़प्पा), सिंधु सौवीरा (मेहरगढ़, नौशारो और मोहनजोदड़ो), शालव (सोठी और सिसवाल), पंचनद (गनवेरीवाला), माहिष्मती (महेश्वर), अवंती (उज्जैन और नागदा), सौराष्ट्र (लोथल और पादरी), कोशल (लहुरादेव, श्रावस्ती और सहेत-महेत), कलिंग (गोपालपुर), प्रागज्योतिषपुर (सूर्य पहाड़ और अंबारी)
नीले रंग में दिखाए गए राज्य पांडवों की ओर से लड़े (कोष्ठक में उत्खनित स्थलों के नाम) – इंद्रप्रस्थ (पुराना किला, फरमाना और गिरवाड़), द्वारका (प्रभास पाटन व ढोलावीरा), मत्स्य देश (विराटनगर), पांचाल (कम्पिल्य, कन्नौज और अहिछत्र), वत्स देश (झूँसी और कौशाम्बी), दशारण (टोकवा और हेतापट्टी), चेदिदेश (एरण और भीमबेतका), काशी (राजघाट), मगध (चिरंद, वैशाली, राजगीर और सोनपुर)
युद्ध के 36 वर्ष के पश्चात द्वारका तथा यदुवंश का विनाश और कलियुग का प्रारम्भ
युद्ध के पश्चात 36 वर्ष के बाद अमावस्या का संयोग त्रयोदशी के साथ जानकार श्री कृष्ण ने कहा कि इस समय फिर राहु ने चतुर्दशी को ही पंद्रहवीं तिथि अर्थात अमावस्या बना दिया है। ऐसा सूर्यग्रहण महाभारत युद्ध से पूर्व देखा गया था। अब यह पुन: परिलक्षित हुआ है, जो यादवों के विनाश का सूचक है। यहाँ पर बताया गया सूर्यग्रहण द्वारका से 3 मार्च 3102 ईसापूर्व (ऐतिहासिक वर्ष 3103) को देखा गया था; प्लैनेटेरियम सॉफ्टवेयर द्वारा दर्शाया आकाशीय दृश्य देखें :–
इसके पश्चात गांधारी तथा अन्य ऋषियों का श्राप सत्य सिद्ध हो गया; यादवों का विनाश हो गया और श्री कृष्ण मानव लोक से प्रष्ठान कर गए। इसके पश्चात 19 फरवरी 3102 ईसा पूर्व (खगोलीय वर्ष 19 फरवरी 3101 वर्ष ईसा पूर्व) की सुबह कलियुग के प्रारंभ को दर्शाता हुआ आकाश देख कर पाठक गर्व का अनुभव कर सकते हैं कि कैसे उनके हजारों वर्ष पुराने विश्वास आज विज्ञान के माध्यम से सत्य सिद्ध हो रहे हैं
पुस्तक विमोचन के समय विशिष्ठ अतिथियों द्वारा पुस्तक के विभिन्न पहलुओं पर की गयी व्याख्या सुनें / देखें
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Saroj Bala presenting tokens of gratitude & reading citation after Book Launch in JNU; 12 Nov 2022
After the launch of "महाभारत की कहानी, विज्ञान की जुबानी", the author made an emotional appeal to distinguished guests, invitees, faculty and students of JNU as under - After writing books on Ramayan & Mahabharat by including reasonably convincing scientific evidence, which proves their historicity & antiquity, I feel that I have fulfilled the role assigned to me by the great man of the century, Dr. A.P.J. Abdul Kalam in accomplishing the noble mission of creating shared pride in India’s rich ancient heritage. Now leaving the responsibility of spreading awareness about these facts on you, your associates and posterity, I wish to rest at the feet of God Almighty. I have this faith that one day, we Indians will develop a shared pride in that great Vedic Culture, which has been developing indigenously for last 9000 years in India. May Shri Ram and Shri Krishna provide you with opportunity as well as capability to play a significant role in making India a world leader in the field of knowledge! May our ancient wisdom, combined with modern science, lead humanity towards peace and prosperity!
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रामायण और महाभारत महाकाव्यों में विश्वसनीय वैज्ञानिक प्रमाणों को शामिल कर, उनकी ऐतिहासिकता और प्राचीनता को यथोचित ढंग से सिद्ध करते हुए, अंग्रेजी तथा हिंदी में पुस्तकें लिखने के बाद, मुझे लगता है कि इस युग के महामानव डॉ अब्दुल कलाम द्वारा दिये मिशन को पूर्ण करने में अपनी भूमिका का निर्वहन मैंने कर दिया है। अब आप तथा आपके सहयोगियों और भावी पीढ़ियों पर इन तथ्यों के बारे में विश्व में जागरूकता फैलाने की जिम्मेदारी छोड़कर, मैं परमपिता परमात्मा की चरणधूली में समा जाना चाहती हूँ। डॉ कलाम की तरह मुझे भी विशवास है कि ईश्वर पिछले 9000 वर्षों से स्वदेश में लगातार विकसित हो रही वैदिक सभ्यता में सभी भारतीयों में एक सांझा गौरव का संचार अवश्य करेंगे। श्री राम और श्री कृष्ण आपको अवसर तथा क्षमता प्रदान करें ताकि आप भारत को विश्वगुरु बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकें और हमारा प्राचीन ज्ञान आधुनिक विज्ञान के साथ मिलकर मानवता को शांति, समृद्धि और सम्पन्नता की ओर अग्रसर कर सके !
सुनें डॉ सुभाष सरकार को "महाभारत की कहानी, विज्ञान की ज़ुबानी" पुस्तक की सराहना करते हुए।
भारत के उच्च राज्य शिक्षा मंत्री के अनुसार महाभारत की कहानी, विज्ञान की जुबानी कोई साधारण पुस्तक नहीं है। इसमें महाभारत में वर्णित घटनाओं का तिथि निर्धारण वैज्ञानिक प्रमाणों के आधार पर किया गया है। महर्षि व्यास द्वारा रचित महाकाव्य से निकाले गए 52 वर्षों के अनुक्रमिक खगोलीय संदर्भों के प्लैनेटेरियम व स्टेलेरियम द्वारा दर्शाये व्योम-चित्रों को शामिल कर युद्ध की तिथियों का सटीक निर्धारण किया गया है।
इन खगोलीय तिथियों की संपुष्टी करने वाले पुरातात्विक साक्ष्य भी शामिल किए गए हैं। महाभारत में वर्णित तालाबों और गोदामों, रथों और घोड़ों, स्वस्तिकों और शिवलिंगों, अस्त्रों एवं शस्त्रों, रत्नों एवं आभूषणों, पेड़ों व फसलों, अनाज और जड़ी बूटियों आदि से मिलते-जुलते उत्खनित नमूनों और कलाकृतियों को कार्बन तिथिकरण के साथ शामिल किया गया है। इन तथ्यों ने सिद्ध किया है कि तथाकथित हड़प्पा स्थल वास्तव में महाभारत काल के उन राज्यों में स्थित थे, जिन्होंने मानवता के इतिहास में अब तक लड़े गए सबसे विनाशकारी युद्ध में भाग लिया था?
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इस पुस्तक की सबसे महत्त्वपूर्ण उपलब्धि वो मानचित्र है जिसमें महाभारत युद्ध में लड़ने वाले राज्यों को उनमें स्थित पुरातात्विक स्थलों की जीपीएस प्लॉटिंग के साथ दिखाया गया है तथा यह सिद्ध किया गया है कि वास्तव में वो महाभारत काल के वैदिक स्थल थे।
श्री संक्रांत सानु जी ने पुस्तक में शामिल वैज्ञानिक प्रमाणों को समझाया 12 November 2022 JNU
संक्रांत सानु जी ने बताया की महाभारत में दिए गए तथ्य विज्ञान पर आधारित हैं तथा महाभारत में दी गयी ग्रहों नक्षत्रों की सटीक तिथियाँ निर्धारित की गयी हैं । इसी आधार पर महाभारत में वर्णित महत्वपूर्ण घटनाओं का तिथि निर्धारण किया गया है ।
पिछले 25920 वर्षों में किसी और वर्ष-समूह में महाभारत के खगोलीय संदर्भों के साथ हू-ब-हू मिलते ऐसे अनुक्रमिक व्योमचित्र आकाश में देखें नहीं जा सकते l इन खगोलीय तिथियों की संपुष्टी करने वाले अनेकों पुरातात्विक साक्ष्य भी इस पुस्तक में शामिल किये गये हैं l निष्कर्ष ये निकला कि तथा-कथित हड़प्पा स्थल महाभारत काल के उन राज्यों में स्थित थे, जिन्होंने मानवता के इतिहास में अब तक लड़े गए सबसे विनाशकारी युद्ध में भाग लिया था। इसलिए स्पष्ट तौर पर ये महाभारत काल के वैदिक स्थल थे l
आर्यों के 3500 वर्ष पहले भारत में आगमन का कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं मिल सका! परन्तु इस तथ्य के अनेकों वैज्ञानिक प्रमाण मिलते हैं कि आर्य लोग तो 9000 वर्षों से भारत में स्वदेशी सभ्यता का विकास करते आ रहे हैं। इस पुस्तक में शामिल मानचित्र अत्यंत महतवपूर्ण है क्यूंकि इसमें महाभारत युद्ध में भाग लेने वाले राज्यों को उनमे स्थित पुरातात्विक स्थलों की GPS प्लोटिंग के साथ दिखाया गया है l इस मानचित्र को देखने के उपरांत भारत के प्राचीन इतिहास की पुरातनता और समृद्धि के बारे में पाठकों की धारणा शायद स्वतः ही बदल जाएगी।
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Shri Tankeshwar Kumar, V.C. C.U. Haryana recommends the book for diff. deprt. of Universities
Shri Tankeshwar Kumar while appreciating the book Mahabharata ki Kahani Vigyan Ki Zubaani said that this book is very important not only for the students of Sanskrit, but also for students of history, archaeology and other sciences.
He elaborated that by relating the scientific evidence from different disciplines with extracts from Mahabharat Sanskrit texts, it has been proved almost beyond doubt that Mahabharat, like Ramayan, is our ancient history. The universities should introduce this subject in different departments by running courses as well as for assigning topics for doctorate.
He concluded by saying that the books of this type must keep coming as these make us aware of our ancient history.
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एक महान इंसान एवं मेधावी अधिकारी, श्रीमती सुधा शर्मा को समर्पित है यह पुस्तक
श्रीमती सुधा शर्मा के पास दूसरों का भला करने की असीमित क्षमता है और तीव्र इच्छा भी है। निस्वार्थ सेवा का भाव उनमें कूट-कूट कर भरा है। केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड के अध्यक्ष पद से सेवानिवृत्त होने के बाद उन्होंने होम्योपैथी दवा, प्रवचन, और सकारात्मक सोच के माध्यम से मानवता के शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक कल्याण के लिए स्वयं को समर्पित कर दिया।
पिछले तीन-चार वर्षों में कई स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं और अवसादों के दौरान, मुझे शारीरिक तथा मानसिक रूप से स्वस्थ रखने में उनकी बहुत बड़ी भूमिका है। उनके इन अथक प्रयासों ने ही मुझे यह पुस्तक लिखने में सक्षम बनाया। इसीलिए मैं यह पुस्तक उन्हीं को समर्पित करती हूँ।
साथ ही यह पुस्तक मेंने अपने छः वर्ष के नन्हें पोते ‘समर्थ’ को भी समर्पित की है जिसने अपनी बीमार दादी के प्रति सेवा तथा प्रेम का भाव सदा ही रखा। यह प्यारा बच्चा सहायता की अपेक्षा रखने के बजाए सहायता करने के लिए सदैव तैयार और तत्पर रहता था।
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Below are some glimpses of the Event in JNU on 12.11.2022 : -
Brochure giving overview of the contents of the book "महाभारत की कहानी, विज्ञान की ज़ुबानी, launched on 12th November 2022 at J.N.U
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Website: http://www.sarojbala.com / Rigveda to Robotics
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Author Email: sarojbala044@gmail.com
Publisher Email: visionindiapublications2022@gmail.com
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